मंगलवार, 19 मई 2020

साथ निभाने वाला!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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साथ निभाने वाला!

जो भी आया जिंदगी में ,मतलब परस्त 
आया!
कब मिलता है कोई ,सही राह दिखाने वाला!
रब के दर पे ,उम्मीद की झोली फैलाई है 
हमने!
बिगड़ी किस्मत है सबकी, वही तो बनाने 
वाला!
छोड़ जाते है अक्सर वो लोग, जिन्हें हम 
चाहते है!दे रब अब तो,कोई हमनवां साथ 
निभाने वाला!
साथ होगा ,गर कोई हम-कदम बावफां जिंदगी में!
न आयेगा कभी कोई दर्द-ए -पल,हमें रूलाने वाला!
जिसके लिए हमने, वफा का दीप जला रखा है!
चाह कर भी कोई तूफान नहीं,उसे बुझाने वाला!
दूर हर बार, रब उसे ही मंजिल से करता है,
दुसरो का दिल ,जो है हमेशा दुखानें वाला!
वैसे तो बुरे लोग खुश दिखते इस दुनिया में,
पर कर्मो की मार से कौन है,उन्हें बचाने वाला!
रब ने रख रखी है, हर इन्सान के कर्मो पे नज़र,
हर बही-खातें का हिसाब, वही है करने वाला!
बेशक मुझे दिए दर्द से,
तुझे कोई फर्क नहीं पड़ता!
तुझे भी दर्द दे जायेगा,
बेशक ये वक्त आने वाला!
मासूम जज़्बातों से खेलना, 
तेरी आदत होगी!
लूट जायेगा तुझे भी, कोई ये खेल खेलने 
वाला!
प्यार,वफा, एतबार सबके दिल में शामिल है!
तो क्यूं नहीं,
फिर मिलता है, दिल से कोई साथ निभाने
 वाला?

- रेखा रुद्राक्षी।




इन्तजार रहा तेरा!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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इन्तजार रहा तेरा!

हमें हर घड़ी इन्तजार रहा तेरा!
पर तूने कभी परवाह न की!
हमनें हर लम्हा साथ दिया तेरा!
पर तूने कभी मेरी कद्र न की!
जिंदगी से परेशां थे!
कम गम न थे!
कभी ऐसा वक्त न आया,
जब तेरे साथ अकेले सफर में, हम न थे!
कभी तुझसे कुछ चाहा नहीं!
क्या तेरे कुछ अनमोल पलों के भी,
हकदार हम थे नहीं? दर्द दिल में मेरे थे काफी!
पर हर ज़ख्म भरने के लिए, एक तेरा दीदार था काफी!
दुनिया की भीड़ में, न भूलोगें मुझको!
ये दिल को एहसास था बाकी!
चलो अच्छा है भ्रम मेरा टूटा!
दिल से विश्वास का साथ छूटा!
मुबारक, तुमकों दिखावे की दुनिया!
ये नई बात नहीं, जो दिल मेरा फिर टूटा!
शुक्रिया तुम्हारा ,नहीं शिकवा कोई!
क्या करना ,जब अपना मुकद्दर ही रूठा!
तेरे अपनों के बीच, मैं अजनबी थी!
माफ करना, जरा भूल में पड़ी थी!
तेरी राहों में, पत्थर बन खड़ी थी!
मुझे क्या पता था, रिश्ते दिल के नहीं होते!
वरना हर बार हम यूं न रोते!
काश, तेरे दिल में थोड़ी जगह
मेरी भी होती!
तो इन्तज़ार की घड़ियां, यूं लम्बी न होती!
हर बार और बार -बार मैंने हार मानी!
पर फिर भी तूने, मेरी कद्र न जानी!
पर फिर भी तूने, मेरी कद्र न जानी!

- रेखा रुद्राक्षी।





काश, तू मेरे साथ होता!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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काश, तू मेरे साथ होता!

मेरी खामोशियां,अक्सर मुझे रुला जातीहै!
दिल के कोने में बसी तेरी याद,
न जाने क्यूं आंखें नम कर जाती है!
खोया हुआ हर ख्वाब लगता है!
बिछड़ा हुआ बरसों का,तेरा साथ लगता है!
मेरी तन्हाईयां अक्सर,
तेरा नाम लिया करती है!
भीगी पलकें भी,मुस्कुरा दिया करती है!
काश,मेरी ख्वाहिशों का तुझे एहसास होता!
काश, मेरी किस्मत में तेरा साथ होता!
बहुत मुश्किल है सफर मोहब्बत का,
काश, मुझे इस दर्द-ए-दिल का एहसास होता!
वैसे तो नामुमकिन नहीं,अगर ठान लों,
 कि साथ निभाना हैं,बस, तुझमें साथ
 निभाने का थोड़ा हुनर होता!
लाख मजबूरियां सही,
तेरी दुनिया में सनम!
वो भी हो जाती नाकाम, 
हमारे प्यार के आगे,
बस ,तुझमें हालातों से लड़ने का
थोड़ा जिगर होता!
खैर ,क्या शिकवा-शिकायत तुझसे हम करें!
हमारा प्यार ,अगर तेरे काबिल होता,
तो तू जमाने की परवाह न करता!
मेरी आंखों में तेरा यूं,इंतजार न होता!
हम पास होते और हमसफ़र भी बनते,
बस ,तू बेपरवाह जमाने से,
एक पल भी ,
जो मेरे साथ होता!        

- रेखा रुद्राक्षी।





किरदार, वफादारी का निभाया हैं हमनें!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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किरदार, वफादारी का निभाया हैं हमनें!

 हर ग़म को, हँस के गले लगाया है हमनें!
प्यार है मेरी दुनिया में,
ये हर वक्त जताया है हमने!
जब भी आंखों से, अश्क मेरी छलके,
खुशी का शबब, इन अश्कों को बताया है हमने!
कभी समझा ही नहीं, उसने हाल-ऐ- दिल मेरा!
कैसे बेपरवाह से, दिल लगाया है हमने?
न रहा खुशियों से वास्ता अपना,
फिर भी मुस्कुरा कर, हर ग़म छुपाया है हमने!
हम है बोझिल, अपने गम-ऐ- हालातों से!
फिर भी अपना आशियाना सजाया है हमने!
मांग कर दुआ, हर बार तेरे लिए,
अपना ही दामन, हमेशा खाली पाया है हमने!
कोई अब नहीं करता, वफा-ऐ- उल्फत जहान में!
फिर भी किरदार, वफादारी का,
दिल से निभाया हैं हमनें!
उम्मीद की दुनिया में, एक नया फूल खिला जब!
उससे भी एक उम्र का फासला पाया है हमने!
जीना आसान नहीं, अब हम-कदम तेरे बिना!
तुझसे ही ये राज, न जाने क्यूं छुपाया है हमने!
अपने हर दर्द से, हम डर गए है इतना,
तुझसे फासला बड़ा,
तुझे हर दर्द से बचाया है हमने!
मेरी रूह, मेरी तन्हाईयां, तेरी यादों का समन्दर है!
कोई तुझे बदनाम न करे,
इस तरह तेरी तस्वीर को दिल में, छुपाया है हमने!                                             

- रेखा रुद्राक्षी।              









एक एहसान कर दें!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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एक एहसान कर दें!

जिंदगी के हर रंग को, देखा है हमनें!
हर रिश्ते में प्यार का,
दिखावा देखा है हमनें!
मांगा जब उस खुदा से, खुशी का जहां!
वहां से भी खाली रहा, मेरा दामन!
अपनों ने ही हमको लूटा, ये देखा है हमनें!
सहते-सहते नफरत की इन्तहा हो गई!
हर बार एक नया दर्द सहा हैं हमने!
हर बार सोचा, अब कुछ अच्छा होगा!
पर हर बार, बुरा वक्त देखा हैं हमने!
आंखें थक गई, आंसुओं को बहाते- बहाते!
खुशी का मंजर, कब कहां देखा है हमने!
तलाशें, सुकून ढूंढा, जब किसी का साथ मिला!
पर उसका भी साथ, अधूरा पाया है हमने!
क्यूं हर बार, किस्मत रूला देती है हमें?
किसी का क्या बुरा किया है हमने?
मौत भी दरवाजे पर, क्यूं दस्तक नहीं देती?
ऐसा क्या गुनाह किया है हमने?
जीने की कोई मंजिल, कोई राह तो दिखा रब!
तेरे दर पे, हर बार ही तो, सजदा किया है हमने!
मांगी हमेशा, सब के लिए ही मन्नत!
अपने लिए, कब जिया है हमने?
रहम है तेरे दर पे तो इल्तज़ा इतनी है-
हम पे कभी रहम थोड़ा कर दें!
दामन है खाली, रास्ते हैं उलझे,
किसी बा-वफा को मेरी जिंदगी में ला,
औरउसे मेरी किस्मत का मसीहा कर दे!

- रेखा रुद्राक्षी।









अलविदा चाहते हैं!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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अलविदा चाहते हैं!

जरूरी नहीं, कि उम्र- भर साथ निभाए कोई!
आपको, आपकी तरह चाहे कोई!
उम्मीद की लौ, अब हवा के
एक झोंके से बुझ जाती है!
वफा अब कहां, किसी को रास आती है!
तेरी पनाहों से दूर जाना, आसां तो नहीं!
क्या करे, जब तूने हमें समझा ही नहीं!
तेरी मोहब्बत का, तलबगार रहा दिल!
तू परेशान न हों, ये सोचकर परेशान रहा दिल!
तेरी मुस्कान,तेरी खुशी के लिए,
मैंने अपने हर दर्द को, तुझसे
कभी बयां किया ही नहीं!
माफ करना, बिन बताए, तेरी दुनिया
से अलविदा चाहते हैं!
अंधेरी जिंदगी के साए में,
हम अपना हर ग़म छुपाते है!
इल्तज़ा इतनी, तुम मुझे भुल जाना नहीं!
तकलीफ़ तो होगी, इस दिल को बहुत!
पर मुझे तुम, कभी याद आना नहीं!
बहुत मुश्किल होगा, तेरी यादों का सफर!
बातें तेरी तड़पायेगी, हमें रह-रह कर!
कुछ हासिल नहीं मुझे, तेरे सिवा इस दुनिया में!
मेरी तन्हाईयों को, तेरा ही साथ मिलें!
बस रब से दुआ हैं इतनी,
मुझे हर जन्म, तेरा बस तेरा ही प्यार मिलें!
बहुत खूबसूरत होगा, जिन्दगी का सफ़र!
जो हर बार हमसफ़र, बस तू मुझे यार मिलें!
हर जन्म तेरा ही, मुझे प्यार मिलें!

- रेखा रुद्राक्षी।








तुमकों भी, वफादार रहना पड़ेगा!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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तुमकों भी, वफादार रहना पड़ेगा!

किसी को मंजिल की तलाश थी!
राहों में उलझा, परेशान, अकेला था!
किसी को प्यार की तलाश थी!
तन्हा, दर्दों-रंज से भरा, 
जिंदगी का सिलसिला था!
अचानक मिलें, वो दो अजनबी!
बातें हुई दोनों के बीच, कुछ खास नहीं!
फिर भी कशमकश अजब-सी हुई,
दिल को उसकी सारी बातें छुई!
उसकी खामोश आंखें, बहुत कुछ कह गई,
वो मिला मुझको ऐसे,
जिंदगी में न कोई कमी रह गई!
हर ग़म कोसों दूर जाने लगा,
दिल मेरा फिर से मुस्कुराने लगा!
बंदिशें बहुत थी, बहुत थे सवाल!
हमारे रिश्ते से हो जाता बवाल!
इसलिए साथ,उसका कभी मांगा ही नहीं!
उसके सिवा जिंदगी में, कुछ रहा भी नहीं!
चाहा बहुत कि उसको मांग लूँ ख़ुदा से,
हो जाए वो मेरा, उसके दर पे दुआ से!
मगर क्या करें, ये दुनिया की रस्में!
उसकी खुशी के लिए, तोड़ दी सारी कसमें!
दुखा कर अपने ही दिल को, सजा दी हमने!
उसे पाने की चाहत, दिल से भुला दी हमने!
वो चाहता, तो शायद अपनी जुदाई न होती!
यूं होंठों पे मेरे, उसके प्यार की दुहाई न होती!
चलो अलविदा, अब तुमको कहना पड़ेगा!
तुम्हें खुश देखना है तो,
दर्द- ऐ - जुदाई को सहना पड़ेगा!
बहुत दर्द देखें हैं, आंखों ने मेरे!
क्या नई बात, जो एक दर्द और हमें सहना पड़ेगा!
इस जन्म तेरा साथ अधूरा सही,
पर अगले जन्म तुम्हें मेरा बनकर रहना पड़ेगा!
मैंने चाहा है, बड़ी शिद्दत से तुमको!
तुमको भी वफादार रहना पड़ेगा!
दर्द देना आसान है, ये हम जानते है!
बस इल्तज़ा इतनी है,
तुम्हें भी हमसे सच्ची मोहब्बत है-
ये दुनिया के आगे, एक बार तुमको कहना पड़ेगा!
ये एक बार तुमको कहना पड़ेगा!!

- रेखा रुद्राक्षी।





सम्मान अधिकार है सबका!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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सम्मान अधिकार है सबका!

क्या नारी,क्या पुरुष- प्रधान,
सबकी अपनी एक पहचान!
मां ने घर को संभाला है!
पिता ने हमको पाला है!
मां ने खाना खिलाया है!
पापा ने भी तो कमाया है!
मां घर का काम जो करती है!
पापा की भी मेहनत तो, लगती है!
औरत-औरत की दुश्मन है!
ये सत्य वचन, ये सत्य कथन!
औरत ही सास जब बनती है!
बहू से झगड़े करती है!
शाम को लौटें जब पुरुष-प्रधान!
उनके कान,वहीं तो भरती है!
एक घर को, दो टुकड़ों में,
एक औरत ही हरदम करती है!
शादी से पहले जहां चार भाई थे,
एक छत के नीचे जो रहते थे!
अलग बिखर कर जो घर टूटें,
वो औरत के ही किस्सें थे!
जहां हुए मकान के हिस्सें थे!!
माना कि बलात्कार हो रहे!
माना औरत पर अत्याचार हो रहे!!
पर उनको कई बार बचाने वाले ,
मानव पुरुष-प्रधान ही होते है!
कौन ग़लत है? कौन सही है?
ये कैसे, कोई इन्साफ करें?
बस,औरत, औरत को समझें,
और खुद से ही इन्साफ करें!
जब उठे सर, जुल्मों-सितम का,
औरत ही औरत की मदद हर बार करे!
ये कलयुग है, 
युग बदलगया,
अब औरत, 
औरत का पहले सम्मान करें!

- रेखा रुद्राक्षी।




क्या पाया, तुझसे, ऐ जिंदगी ?(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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क्या पाया, तुझसे, ऐ जिंदगी ?

 क्या पाया, तुझसे,ऐ जिंदगी ?
तन्हाई, दर्द, आँसुओं का साया है जिंदगी!
पाकर भी जो मेरा न हो सका,
उसका हर पल ही साथ निभाया, ऐ जिंदगी!
क्यूँ तूने हर राह पे कांटे बिछायें मेरे ?
फिर भी उस राह को मुस्कुरा के,
पार किया, ऐ जिंदगी!
मैंनें अब तक हार न मानी,
कितना तूने मुझे आजमाया है, ऐ जिंदगी!
छोटा-सा दिल क्या-क्या सहता रहा,
तुझे कभी मुझपे, तरस न आया,ऐ जिंदगी ?
माना, खुशी के तुने कुछ पल दिए,
पर वहाँ भी,
तूने कम साथ निभाया,ऐ जिंदगी!
मौत के दरवाजे पर दस्तक दी हमनें ,
वहां भी तूने हमको, गिराया, ऐ जिंदगी!
मैं चुप हूँ ,खामोश हूँ , 
यही मेरी खता रही,
पर तूने भी कब, सही रास्ता दिखाया, ऐ जिंदगी ?
लोग कहते है, जिंदगी सब कुछ देती हैं ,
पर मैंनें तो, हमेशा अपना दामन,
ख़ाली पाया, ऐ जिंदगी!
अब तो यूं बार-बार, मेरा दामन न जला!
खुशीयों से भरा, 
एक आशियाना दे देना, ऐ जिंदगी!
थकी हारी उम्मीद की, इस दुनिया में,
किसी के प्यार की पनाह दे देना, ऐ जिंदगी!
मिला कर, अब खुशी से मेरा हाथ,
न बिछड़ने का ,
अब कोई दर्द देना, ऐ जिंदगी!
शिकायत अभी भी नहीं, मुझे तुझसे कोई,
पर अब तो, मुझे खुश रहने की,
कोई एक तो वजह दे देना, ऐ जिंदगी!

- रेखा रुद्राक्षी।







वो कुछ खास लम्हें!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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वो कुछ खास लम्हें!

उसे तो ये खबर भी नहीं,
कि हम उससे दूर जाने लगे हैं!
क्या करें, इस दिल से, 
मजबूर होने लगे हैं!
उसे तो ये खबर भी नहीं,
कि हम उससे दूर जाने लगे हैं!
वो खास लम्हें, हमको सताने लगे हैं!
तुझसे मिलने के लिए, जिन लम्हों में,
सौ बहाने लगे हैं!
तुझे तकलीफ़ नहो, मेरे दूर जाने से,
इसलिए तेरे सामने, हम मुस्कराने लगे हैं!
तुझसे हर दर्द, दिल का छुपाने लगे हैं!
पता है, जब के, तेरी मंजिल और कहीं है!
 तो खुद अपनी राहें जलाने लगे हैं!
उसे तो ये खबर भी नहीं,
कि हम उससे दूर जाने लगे हैं!
तुम्हें मुबारक हों, जहां की खुशियाँ!
हम रोशन चिरागों को, अपने आशियाने से,
अब बुझाने लगे हैं!
तेरी एक मुस्कराहट के लिए,
हम हर दर पर,  सिर झुकाने लगे हैं!
उसे तो ये खबर भी नहीं,
कि हम उससे दूर जाने लगे हैं!
जब किस्मत को मंजूर नहीं, 
हमारा मिलना?
तो क्युँ, तुझसे उम्मीद लगाने लगे हैं?
हम खुदगर्ज और बेपरवाह नहीं,
तेरी यादों के सहारे,दिन बिताने लगे हैं!
नहो मेरी वजह से, 
कभी आँखें नम ये तेरी!
अपनी आँखों के आंसू, छुपाने लगे है!
सच है, के जी न सकेंगें हम,तेरे बिन!
पर तेरी सलामती, तेरी खुशी के लिए,
गम में भी डूबे हैं फिर भी,
खुशी का जशन, हम मनाने लगे है!
उसे तो ये खबर भी नहीं,
कि हम उससे दूर जाने लगे है!

 - रेखा रुद्राक्षी।




तुम बिन, जीना पड़ा तो!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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तुम बिन, जीना पड़ा तो!

 हर अश्क आंखों से छलके,
ये जरूरी तो नहीं!
सबकी किस्मत में मोहब्बत हो,
ये ज़रूरी तो नहीं!
मिल भी जाए, कभी जो सच्चा हमसफ़र!
वो उम्र-भर साथ निभायेगा,
ये जरूरी तो नहीं!
ख्वाब तो हर रात हम सजा लेते है!
पर हर ख्वाब पूरा हो, ये ज़रूरी तो नहीं!
जिसे दिल ने बना लिया अपना खुदा!
वो भी हमारे प्यार की इबादत करें,
ये जरूरी तो नहीं!
छुपाकर सारे ग़म, अपने हम बेवजह मुस्कुराए!
किसी से राज-ए-दिल कह दें,
और वो छुपालें सबसे,
ये जरूरी तो नहीं!
हम तो रिश्तों को निभाते रहें, बेमतलब,बेवजह!
हर शख्स, रिश्तों की अहमियत समझें,
ये जरूरी तो नहीं!
माना हम कमजोर हैं,
दिल से मोम है!
पर हर कोई दिल को जलाए ,
ये जरूरी तो नहीं!
कुछ लोग आज भी वफा तो करते होंगें!
औरहर शख्स बेवफा हो,
ये भी जरूरी तो नहीं!
सच कहूँ, तुमसे मिलकर ही मैंनें ये जाना,
मोहब्बत आज भी जिंदा हैं!
पर डर लगता है ये सोचकर,
तुम बिन जीना कभी पड़ा तो,
ये धड़कनें, ये सांसें, यूं ही चलती रहेंगी,
ये भी जरूरी तो नहीं!

- रेखा रुद्राक्षी।



मैं भी इन्सान हूँ!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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मैं भी इन्सान हूँ!

हाँ, मैं औरत हूँ, पर इन्सान हूँ!
मुझमें कमी ढूँढ रहा है, हर कोई!
कौन बेदाग हैं , जरा ये तो बताओ?
मुझमें तहजीब नहीं, ये कहने वालों!
किसी अपने की शराफत, तो सुनाओ!
मैं चुप रहकर, सब कुछ सह जाऊं!
और जुबां से उफ्फ नकरूं!
कितना एहसान करते हो मुझपे!
दुनिया के आगे झूठा रिश्ता न निभाओ!
मैं खामोश हूँ, यही संस्कार है मेरे,
मेरे संस्कारों पर, उंगली न उठाओ!
घमंड के नशे में,चूर है शख्सियत आपकी!
मुझे मेरी हैसियत न बताओं!
नहीं दिल दुखाया मैंनें, कभी किसी का,
बस, इतना समझ जाओ।
बेशक नहीं छलकते, मेरी आंखों से आंसु,
पर दर्द और तकलीफ़ को महसूस करती हूँ ।
मैं भी इन्सान हूँ! जुल्म करने वालों!
हर रिश्ते को अपना समझती हूँ।
 न थकती हूँ , न हारती हूँ,
हर बात आपकी मानती रही!
अपमानित जब भी मुझे आपने किया,
आपकी इज्जत के लिए,मैं दुखों को,अपने सुखों की छलनी से छानती रही!
सही है मैंनें, रिश्तों में हर एक चुभन!
होती तो हैं यारों,मुझकों भी घुटन!
काश, कोई ऐसा होता, जिससे मैं ये कह पाती-
हाँ, मैं औरत हूँ, पर इन्सान हूँ !

- रेखा रुद्राक्षी।






सोमवार, 18 मई 2020

ग़मों से भरी जिंदगी!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

 C:\Users\Bajaj.com\Desktop\Poetry Rekha Sharma\3. gazal.jpeg

ग़मों से भरी जिंदगी!

ग़मों से भरी जिंदगी, हर बार गुजरी है!
सारी उम्र तन्हा, बेकरार गुजरी है!


कोई तो वफा-ए-उल्फत, निभाता प्यार में!
बेवफाओं से टकरा कर, हवा हर बार गुजरी है!


निगाहें नहीं मिलाते वो, अब जब भी मिलते है!
उनकी राह से, मेरी मंजिल,हर बार गुजरी है!


उनकी याद में, बीती हर रात, अश्कों में!
दिल को जख्मी कर, यादें हर बार गुजरी है!

मिला नहीं, जो नहीं लिखा था, किस्मत में!
ये जिंदगी बस,उनके इन्तज़ार में गुजरी है!


- रेखा रुद्राक्षी।


हम ज़ुबान के कड़वें!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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हम ज़ुबान के कड़वें!

हम सिर झुकाते हैं, 
जहां इन्साफ होता है!
अदब,शराफत का मेल, 
लाजवाब होता है!
हां, है बेहद हम ज़बान के कड़वें!
पर दिल में सबके लिए इज्जत,
 बेहिसाब रखते हैं!
लफ़्ज़ों में हों, जिनके गुस्ताखियां!
हम उनसे रिश्ता,
 नहीं जनाब रखते हैं!
हो तकलीफ़ ,चाहे जितनी भी हमें !
किसी अपने के दूर जाने से!
ग़लत हो गर, वो शख्स तो,
ऐसे अपनो से ,दूरियां हम खास रखते हैं!
क्या फायदा,
 कारवां लाखों का बनाने से!
जो हो हमदर्द हमारा,
हम उसपे जान, हमेशा निसार रखते हैं!

- रेखा रुद्राक्षी।



बाहों का सहारा दे दें !(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\rekha poetry 5\4. baho ka sahara dede.jpg

बाहों का सहारा दे दें !

बड़ी नाशाज़ है ज़िन्दगी, 
अपनी बाहों का 
सहारा दे,दें!
एक बार फिर मिलने का, 
वक़्त दोबारा दे दें!
बिछुड़ गए थे जिन राहों में, हम ग़लतफहमी के चलते,
उन गलतफहमियों को माफ़ कर , 
अपनी 
ज़िन्दगी से किनारा दे दें!
बड़ी नाशाज़ है ज़िन्दगी, 
अपनी बाहों का सहारा दे दें!
नई ज़िन्दगी का आगाज़ ,
अब तेरे दीदार से होगा!
एक बार फिर अपने साथ, 
हमकदम, बांके ,चलने का मौका मुझे दोबारा दे दें!
बड़ी नाशाज़ है ज़िन्दगी, 
अपनी बाहों का सहारा दे दें!
तुझसे बिछुड़कर जाना ,क्या खोया था हमने!
मुरझा गए फूल,
खो गयी खुशबू!
तुझसे मिलकर ,जो निखरा था वो हुस्न मेरा ,
मुझे दोबारा दे दें!
बड़ी नाशाज़ है ज़िन्दगी, 
अपनी बाहों का सहारा दे दें!
यू खफा होकर, मेरी जफा की शिकायत न कर!
मैं अपनी वफ़ा साबित कर 
दूंगी!बस एक बार,
 अपनी ज़िन्दगी में जगह दोबारा दे दें!
बड़ी नाशाज़ है ज़िन्दगी ,
अपनी बाहों का सहारा दे दें!
न अब मजबूरियाँ आयेंगी 
दर्मिया!
न किसी का डर होगा!
बस एक बार फिर, तेरे दिल में, 
मुझे प्यार भरा एक घर 
दोबारा दे दें!
बड़ी नाशाज़ है ज़िन्दगी, 
अपनी बाहों का सहारा दे दें!

- रेखा रुद्राक्षी।



करवटें ज़िन्दगी की!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\rekha poetry 5\3. karwate zindagi ki.jpg

करवटें ज़िन्दगी की!

देखते ही देखते, बदल जाती है ज़िन्दगी!
इन तीन पहरों में , न जाने कितनी करवटें, 
बदल जाती है ज़िन्दगी!
पाकर खो देना,  खोकर फिर मिल जाना!
वक़्त- बेवक़्त, अनोखे खेल ,
 खेल जाती है ज़िन्दगी!
जो सोचा ,वो मिला नहीं,  जो मिला, वो कभी सोचा नहीं!
कभी कभी अपनी सोच से भी परे, 
क्या कुछ दे जाती है ज़िन्दगी!
ख़ुशी में गम,गम में ख़ुशी,
 हर लम्हे में आ जाती है, आँखों में नमी!
अजीब- सी कश्मकश में,  कई बार बीत जाती है ज़िन्दगी!
कोई चुप रहकर सब कुछ सह जाता है!
तो कोई कहकर अपनी बात भी 
तन्हा रह जाता है!
उलझनों से घिरी क्यों रहती है,  हर बार ये ज़िन्दगी?
कभी समझे, तो कभी नहीं समझे, 
हम हालातों को,इसी उधेड़बुन में , कई बार बिखर जाती है ज़िन्दगी!
कभी जब सोचने बैठते है, 
 क्या -क्या गलतियाँ की हमने!
खुद घबरा जाते है, जब आइना हमारा 
हमें दिखता है!
देखते ही देखते, बदल जाती है ज़िन्दगी!
इन तीन पहरो में, न जाने कितनी करवटें ,
बदल जाती है ज़िन्दगी!
जो कल छूटा ,वो आज मिल न पाया!
जो आज मिला, वो दिल को न भाया!
सच में ,एक बार जो बीत गया,  वो पल वो लम्हात,
दोबारा वापिस, कहाँ दे जाती है ज़िन्दगी!

- रेखा रुद्राक्षी।


ख़ुशीं का फ़साना!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\rekha poetry 5\2.khushi ka fasana.jpg

ख़ुशीं का फ़साना!

आज भी तो ठहरी नहीं, 
ख़ुशी मेरे घर!
किसी ने उसे बहलाया होगा!
मेरे घर का पता, जब उसने ढूंढा होगा!
किसीने तो उसे,मेरा गलत पता बताया होगा!
आज भी ढूंढती हूँ, उसको 
आस- पास!
वो दिखती है जब भी, 
बड़ी होती है उदास!
जब भी मैंने उसे पास 
बुलाना चाहा!
कुछ सवालों में मैं उलझी थी,उसे सुलझाना चाहा!
वो बोली आज- कल ग़म-ए -दौर की हवा चल रही है!
मैं जाती तो हूँ, हर घर पर!
पर मुझे मेरी जगह कहीं 
मिलती नहीं है!
मैंनें फिर भी बहुत उसको,
अपनी बातों से बहलाया!
अपने घर आने के लिए, पता भी बताया!
पर जब भी ख़ुशी आती, 
मेरी चौखट से लौट जाती!
मैं इस बात को, सच, 
मैं समझ ही न पाती!
फिर एकदिन मैंनें ,
उसका हाथ थाम ही लिया!
बड़ी ज़बरदस्ती की और 
उसने मेरी बातों को मान भी लिया!
सच में, मैं उस दिन बहुत 
खुश थी!
ख़ुशी मेरे भी घर, अब चहक रही थी!
मेरी ज़िन्दगी फिर से महक रही थी!
पर न जाने कैसे, 
मैंने दरवाज़ा तो बंद किया,
पर खिड़की बंद करना भूल गयी!
ख़ुशी को मौका मिला और वो फिर मुझसे दूर चली गयी,
आज फिर मेरे घर में,तन्हाइयोंऔर उदासियों का डेरा है!
न मेरा मन खुश है, न आता अब कोई ख़ुशी का सवेरा है!
आज भी तो ठहरी नहीं, 
ख़ुशी मेरे घर!
किसी ने तो उसको बहलाया होगा!
मेरे घर का पता, जब उसने ढूंढा होगा!
किसी ने तो उसे, मेरा गलत पता बताया होगा!

- रेखा रुद्राक्षी।

तेरी गुस्ताखियां!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\best photo rekha ji book\teri gusthakiyan.jpg

तेरी गुस्ताखियां!

हर बार सह जाते हैं,
ज़िन्दगी तेरी गुस्ताखियां हम!
यूं बार- बार हमें सताना अच्छा नहीं!
आंखों से बेशक ,छलकते नहीं आंसु मेरे!
पर दिल तार- तार कर दे तू हर बार,
 ये भी तो अच्छा नहीं!
भर गई है दर्द से, जिंदगी की वीरानियां!
यूं जिंदगी में मौत का बारूद बिछाना,
ये भी तो अच्छा नहीं!
फट जाएगा एक दिन लावा दर्द का!
हमारी वजह से कोई और भी जख्मी हो,
ये भी तो अच्छा नहीं!
ठहर जा, कहीं तो आंधियों को कम कर दे!
तूफान में हर घर उजड़ जाए ,
ये भी तो अच्छा नहीं!
मजबूर ना कर ,कि जिंदगी से हार जाऊं मैं!
यूं जिंदगी में हलचल मचाना बार -बार ,
ये भी तो अच्छा नहीं!
खामोश हूं, पर बेबस नहीं, ये वक्त बताएगा!
मेरी खामोशी को, तू मेरी कमजोरी समझें,
ऐ दोस्त, ये भी तो अच्छा नहीं!
समझ जाएगा ,जिस दिन तू हमारी 
शख्सियत को!
उस दिन तू खुद कहेंगा,माफ कर देना 
मुझको!
सच में तुमसा ,कोई मिला, मुझे सच्चा
 नहीं!
सच में तुमसा ,कोई मिला, मुझे सच्चा
 नहीं!                                                          

 - रेखा रुद्राक्षी।

कर्मों का हिसाब!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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कर्मों का हिसाब!

मेरी औकात, मुझको बताने वालों!
संभल कर रहना ,मुझको रूलाने वालों!
आंखें नम है, पर छलकते नहीं आंसु मेरे!
मेरा हौंसला देखकर, घबराने वालों!
करो बेशक बदनाम मुझे ,सरेआम तुम!
कोई फायदा नहीं ,हम नहीं डरने वालें!
खुदा से बहुत गहरा रिश्ता है मेरा!
पार हो जाएंगे, दर्द के समन्दर में डूब कर भी!
बस ,अपना ख्याल कुछ खास रखना तुम!
खुदा के इन्साफ को, नजर-अंदाज करने वालों!
दान देने से ,अच्छे कर्मों का घड़ा नहीं भरता!
कभी दो -बोल मीठे भी बोलें है?
दूसरों की जिंदगी में, जहर घोलनें वालो!
वक्त करेगा ,आपके सारे कर्मो का हिसाब!
अभी खुश हो जाओ, 
मेरे दर्द- ए- ज़ख्म पर हंसने वालों!

- रेखा रुद्राक्षी




रब जैसा तेरा साथ हैं !(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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रब जैसा तेरा साथ हैं !

तेरा साथ होना, जरूरी है मेरे लिए!
तन्हाइयों में, तू अक्सर मेरे पास होता है!
एक तेरे होने से,
अकेलेपन का असर नहीं ,
मुझपे खास होता है!
मेरी तन्हाईयां भी, चहकने लगती है!
जब ज़हन में, तेरा ख्याल होता है!
बड़ा सुकून देती है तेरी बातें!
जब दिल मेरा कभी उदास होता है!
तू मेरे लिए, मेरे रब की तरह है!
जिसके होने से, हर दर्द-ए- ज़ख्म में,
मरहम का एहसास होता है!
कैसे बताऊं, कितना अनमोल है तू!
बस रब के बाद, हर वक्त जुबां पर,
अब तेरा नाम होता है!
बस, तेरा नाम होता है!

- रेखा रुद्राक्षी। 







मेरी मंजिल!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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मेरी मंजिल!

जिंदगी दोराहे पर, खड़ी मुझे देखती रही!
और मैं जिंदगी को देखता रहा!
वो मुझे हजार रास्तों में, उलझाती रही!
और मैं मंजिल पाने के लिए डटा रहा!
लाखों चेहरें, मुझे अपनी तरफ खिंचने लगे!
पर, मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा!
मुझे मालूम हैं , रिश्तों का कारवां है मेरे साथ,
पर कामयाबी का जुनून ,
इस दिल पर छाया रहा!
इसलिए, हर राह में, अकेले मैं खड़ा रहा!
तस्वीर मेरी, कई दिलों में हो गई धुंधली!
फिर भी हर दिल में, मैं बसा रहा!
मैं जानता हूं, कामयाबी की राह,
संघर्ष-काँटों से भरी है!
माफ करना, थोड़ी मुश्किल ये घड़ी है!
भुला नहीं किसी को ,
न किसी को दगा दिया!
बस, मैं थोड़ा मशरुफ़ हूँ ,
जिंदगी की दौड़ में,
ये न समझना दोस्तों के,
मैंने तुम सबको भुला दिया!

- रेखा रुद्राक्षी







अब वक्त कम हैं!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\Bajaj.com\Desktop\Poetry Rekha Sharma\9. waqt kam h.jpeg

अब वक्त कम हैं!

लगता है, अब वक्त कम हैं!
आखिरी सफर में हम है!
मुस्कुराते लब है लेकिन,
पलकें भीगी और आँखें नम है!
जिसकी पनाहो में खुशी थी,
बड़ी सुकून कि वो घड़ी थी!
चाहा उसे मांग लूँ ख़ुदा से,
पर उसकी चाह, मेरी चाह से बड़ी थी!
वो उस मंजिल का मुसाफिर था,
जहाँ मुश्किलें बडी़ थी!
मैं भी खुदगर्ज तो नहीं थी,
उसकी खुशी, मेरी चाहत से बड़ी थी!
मैं जानती हूँ,अगर मैं इशारा कर दूँ,
तो शायद वो मेरा हाथ थाम लें!
पर,वो उस मंजिल का मुसाफिर था,
जहां मुश्किलें बडी़ थी!
औरदुनिया दीवार बन खड़ी थी!!
दिल सह रहा है क्या-क्या,
ये बातें अनकही थी!
मौत के दरवाजे पर,
दस्तक दे रही,अब जिंदगी थी!
मैं मुस्कुराऊं कैसे और गम छुपाऊं कैसे ?
जाना है सबसे दूर, ये तुझको बताऊं कैसे!
कहते है लोग, के तू हर ग़म को भुला दें!
पर हर बार कैसे ? कोई तो ये बता दे!
इतना आसान नहीं, मझधार से निकलना,
क्योंकि हर कोई अच्छा तैराक नहीं होता!
हर जिंदगी की जंग जीत लेते,
अगर खंजर से वार, अपनों का नहीं होता!
तुम कहते हो, के मुस्कुराओ,
पर हर दर्द में हंसना, आसान नहीं होता!
बस, आखिरी ख्वाहिश है, इस आखिरी सफर में,
काश, दीदार तेरा होता!
बेशक जिंदगी ने गम बहुत दिए,
पर तू मुझे मिला खुदा से!
ये जिंदगी का तोहफा बहुत बड़ा था!!
सच्ची दुआओं का, तू ही तो एक सिला था!
शुक्रिया, मेरी तुम जिंदगी में आए,
कुछ पल ही सही, हम दिल से मुस्कुराए!
माफ करना हमकों, गर हमने कोई खता की,
पर ये भी सच है, दिल से, सच्चे दिल से मैंने,
सिर्फ तुमसे और तुमसे वफा की!
पर, मेरे जाने का गम नकरना,
क्योंकि अब लगता है, वक्त कम है,
आखिरी सफर में हम है!

- रेखा रुद्राक्षी

तेरा दिल,मेरा आशियाना हैं!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

 C:\Users\Bajaj.com\Desktop\Poetry Rekha Sharma\15. mera ashiana.jpeg

तेरा दिल,मेरा आशियाना हैं!

अपनी रूह में, तुमकों बसा रक्खा है!
तेरी चाह में, सबकोभुला रक्खा है!
जख्म हर दिल का, हरा रक्खा है!
दर्द  से भी, दिल  हमने भरा रक्खा है!
डोर  हाथों में थी, जिसके अपनी,
दिल में उसको ही, हमने बसा रक्खा है!
दर्द  दिल का, किसी से कह न सके!
अश्क अपना आँखों में छुपा रक्खा है!
इक जहान, ख्वाब का देकर उसको.
आशियाना दिल में,उसका बना रक्खा है!
रह गया दिल में उतर के जो बस मेरे,
सीने  से  उसको ही हमने लगा रक्खा है!
आँधियाँ  भी न बुझा  पाए जो कभी,
उसकी मोहब्बत का दिया, दिल में जला रक्खा है!             

- रेखा रुद्राक्षी।









हमसफर, वफादार चाहिए!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\Bajaj.com\Desktop\Poetry Rekha Sharma\16. humsafar.jpeg

हमसफर, वफादार चाहिए!

हर शख्स एक वफादार, 
हमसफ़र मांगता हैं!
पर वो खुद कितना वफादार है?
ये वो कब जानता है?
दामन खुद का, दागदार हो चाहें,
पर हमनवां बेदाग चाहिए!
उसकी मोहब्बत को समझें,
ऐसा प्यार चाहिए!
खुद की नजरों में हो, हर चेहरा खुबसूरत,
पर उसकी निगाहों में,तुझे बस तू चाहिए!
हद से ज्यादा, जब कोई चाहे आपको,
तो आपको उसका, हर पल चाहिए!
पर जब उसे जरूरत हो आपकी,
तो आपको उससे मिलने का वक्त चाहिए!
चाहत और एहसास दोनों तरफ,बराबर हैं तो,
दोनों को ही रिश्ता समझना चाहिए!
गर समझ के तुमको कोई,
निभाए तुम्हारा साथ,
तो तुमको भी तो बनानी चाहिए,
उसके दिल में जगह खास!
ये खेल नहीं कोई के खेलते रहो,
जी भर गया तो झेलते रहो!
गर नहीं तुम्हें अब उसकी
मौजूदगी पसंद,
तो बेख़ौफ़ अलविदा तुम्हें
उससे कहना चाहिए!
क्योंकि सच्ची मोहब्बत कभी,
बद्दुआ नहीं देती,
आंखे नम होकर भी जुबां,
कुछ नहीं कहती!
उसे तो बस तेरा हर
गम चाहिए,
उसे तो बस तेरे लबों पे हंसी
और तेरी हर खुशी चाहिए!

- रेखा रुद्राक्षी।







समाज, प्यार,वफा और डर!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\poetrypart2\7.samaj.jpeg

समाज, प्यार,वफा और डर!

हर शख्स प्यार और वफा का तलबगार है!
हर कोई चाहता, मोहब्बत बेशुमार है!
दुनिया की साजिशों से जो जलता रहा,
वो रिश्ता दो दिलों का समाज को खलता 
रहा!
कभी इस ज़मानें ने, 
दो दिलों को मिलने न दिया!
कभी जाति, धर्म ,तो कभी समाज के नाम पे,
चाहत का फूल खिलने न दिया!
मिलकर उन्होंने अपने दम पर, कभी
जो आशियाना बनाया!
उसमें प्यार का दीपक, कभी दुनिया ने 
जलने न दिया!
वैसे तो इस ज़माने में, बेवफाओं का 
ज़ल--ज़ला है!
पर वफादारों को भी ,कभी दुनिया
ने मिलने  न दिया!
सच है, जहां बस्ती है मोहब्बत की बगीया,
उस बाग को कभी इस दोगले समाज ने
फलने न दिया!
चाहता है हर शख्स, 
सच्चा हमसफ़र!
पर समाज की अंधी परम्पराओं ने,
दो कदम भी ,
प्यार के परिंदों को चलने न दिया! 

 - रेखा रुद्राक्षी।








तू हैं, तो सुकून हैं!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

 C:\Users\User.pc\Downloads\poetrypart2\9. tu h toh.jpeg

तू हैं, तो सुकून हैं!

जिंदगी की वीरानियों को,
तेरा साथ मिल गया!
दिल को फिर से जीने का, 
एहसास मिल गया!
बहुत खामोश थी ,
जहां दिल की वादियां!
वहां आज प्यार से भरा,
मुझे एक दिल मिल गया!
तूफान के आने की,
आहट से  डर गए थे!
तेरा साथ मिला मुझे तो ,
मुझे मेरा साहिल भी मिल गया!
अब नम आंखें भी मुस्कुराती है!
सच कहूं, तू मिला तो,
जिंदगी को सुकून का ,
हर पल मिल गया!
तू मिला तो,तो जिंदगी को खुशी का,
हर पल मिल गया!

- रेखा रुद्राक्षी।








मोहब्बत हैं या मजाक!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\poetrypart2\16. mohabbat h y mazak.jpg

मोहब्बत हैं या मजाक!

आजकल के जज़्बात, आजकल के एहसास,तमाशा है, जैसे खेल है कोई!
एक आशियाना उजड़ा नहीं, दूसरा तैयार पाया!
हमने हर इन्सान के चेहरे पर, मुखौटा हजार पाया!
अकेले में कहते है, बेपनहा मोहब्बत है तुमसे!
सबके सामने उनके इकरार को, हमने लाचार पाया,ये भी खूब रहा!
हमने कभी तुमसे, अपने लिए कुछ मांगा ही नहीं!
और तुम्हारे जज़्बात को, अपने लिए नागवार पाया!
खैर छोड़िए, जनाब! ये मतलबी रिश्तों का बाजार है!
हमने तो तुम्हें भी अपना बाजार में खरीदार पाया!
विश्वास की लौ जलाई थी, बड़ी शिद्दत से हमने!
हमारी जिंदगी में अंधेरा करने का,
कहीं न कहीं ,तुम्हें भी हमनें गुनहगार पाया!
तुम कहते हो, जन्मों के रिश्तें अनमोल है मेरे लिए!
आपकी नजरों में हमने,
हमारा रिश्ता ही क्यूं नापाक पाया?
चलिए छोड़िए, ये कोई नई बात तो नहीं, साहेब!
आप भी खुदगर्ज निकलें!
आपने कौन- सा अपने लफ़्ज़ों से कहर नया ढाया?
इस प्यार और जज़्बात को, मजाक क्यूं न कहें हम?
वो मोहब्बत तो करते हैं,
पर दुनिया के सामने उनकी जुबां को हमने,
 हमेशा खामोश पाया!
आज आपको मतलबी रिश्तों का राज बताते हैं!
जिन्हें हमने पर्दे के अन्दर बेपनाह होते देखा,
और बाहर लाचार पाया!
आकर्षण को कभी प्यार का नाम न देना ,साहेब!
प्यार है तो क्यूं दुनिया के सामने,
तुमने खुद को शर्मिन्दा है पाया?
हमने तो राधा के दिल में श्याम है पाया!
श्याम की आंखों में बस राधा के लिए,प्यार है पाया!
उनकी भी अलग दुनिया और अलग दस्तुर थे,
पर प्यार सच्चा था उनका ,
न दुनिया के आगे मजबूर थे!
डरते तो वो है जिनके उसूल नहीं होते,
प्यार वही निभा पाते हैं,
जिनके रिश्ते मजबूत होते हैं, मजबूर नहीं होते!                                            

- रेखा रुद्राक्षी।







साथ निभाता कौन हैं?(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\Bajaj.com\Desktop\Poetry Rekha Sharma\18. nibata kaun h.jpeg

साथ निभाता कौन हैं?

 सभी को इस जहां में, 
सच्चा हमसफ़र चाहिए!
पर ताउम्र साथ निभाता कौन है?
हर इन्सान के दिल में हैं दर्द काफी,
यहां दर्दों-रंज से बचा कौन है?
दाग लगाते हैं, दुसरों के दामन में लोग,
दूध का इस दुनिया में, 
बतायें धुला कौन  है?
मिट्टी का तन, सबका हैं संसार में,
मोतियों से जहां में, भला जड़ा कौन है?
रोकता है मुझे, 
हर  बुराई  करने से जो,
मेरे अंतर्मन में, ये आख़िर छुपा कौन है?
हर शख्स के वजूद पर लगे है दाग,
इस ज़माने में, 
अब साफ आइना कौन है?
खुदा को मालूम है, सबके दिल का हाल!
यहां बेवफ़ा कौन है!और वफ़ादार कौन है!
हर किसी को शिकायत है, 
अपनी किस्मत से,फिर भी इस दुनिया में, मरना चाहता कौन है?
साफ नीयत, अपने आपको 
बताता है हर कोई!
सभी पाक है,तो आखिर बुरा कौनहै?
सब मतलबी है,सोचते है अपने बारे में!
किसी और के बारे में, 
अब सोचता कौन है!

- रेखा रुद्राक्षी।








वैश्या का अंतर्मन!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\photos (1)\vaishya ka anterman.png

वैश्या का अंतर्मन!

एक अनकही कहानी, है मेरी ज़िन्दगी!
किसी ने जी नहीं, फिर भी सबके लिए, बेमानी है मेरी ज़िन्दगी!
कोई मुझे वैश्या कहता है, 
तो कोई ज़रूरत का सामान!
किसी के लिए मैं बाज़ारू हूँ, 
तो किसी के लिए जिस्मानी हूँ!
तो किसी के लिए मैं बहता गन्दा पानी हूँ!
फिर भी रोज़ मुझे सजा कर 
बैठा दिया जाता है!
कभी दुल्हन का लिबास पहनाया, 
तो कभी कपड़ों को उतारा जाता है!
मैं खुश होकर, मुस्कुराकर, 
अपने जिस्म का सौदा करती हूँ!
हा, मैं वैश्या हूँ, अपने जिस्म को 
बेचा करती हूँ!
लोग कहते है, पैसो के लिए, 
मैं ये धंधा करती हूँ!
पर किस से कहुँ, अपनी दास्ताँ, 
मैं रोज़ एक नई एक मौत मरती हूँ!
माना की, इन जिस्मों के बाजार में पैसा खूब कमाया जाता है!
पर हर रोज़ पेट भरने के लिए ही, 
हवस का बिस्तर सजाया जाता है!
हमे नापाक कहने वाले दरिंदे, 
हमे नोच- नोच कर खाते है!
और बाहर की दुनिया में, 
शराफत का नकाब ओढ़ के जाते है!
हां, मैं वैश्या हूँ, 
अपने जिस्म को बेचा करती हूँ!
किसे क्या पता, 
कई ज़िंदगिया बर्बाद हो जाती, 
इस दहलीज़ पर!
हस्ती खेलती बच्चियों को लाया जाता है, इस जेल पर!
चारो तरफ बंदिशे और दरवाज़ो पर 
ताले होते है!
कैसे निकल कर भागे, 
इन बाज़ारो में भी पहरे गहरे होते है!
हां, मैं वैश्या हूँ, 
अपने जिस्म को बेचा करती हूँ!
मेरे घाव अंतर्मन के कैसे, 
किसी को मैं बतलाऊ?
माँ- बाप,भाई- बहन की याद बहुत आती है, कैसे किसी को समझाऊ?
मैं भी राखी का त्यौहार मनाना चाहती हूँ!
मैं भी किसी पर पत्नी का अधिकार 
जताना चाहती हूँ!
अब सिर्फ भेडियो के बीच मैं अपना किरदार निभाती हूँ!
हां, मैं अब जिन गलियों मैं रहती हूँ, 
वहा वैश्या कहलाती हूँ!
मैं भी चाहती हूँ कोई हाथ थाम कर, 
मुझे घर अपने ले जाए!
माँ ये तुम्हारी बहु है, ऐसी खुशिया मुझे मिल जाये!
पर इस दिखावे के संसार में, 
अमीरो का बोल- बाला है!
पैसो की चमक ने हमारी चमड़ी तक का सौदा कर डाला है!
बेआबरू होकर भी, अब आबरू 
बची- सी लगती है!
लूटकर बच्चियों की इज़्ज़त उन्हें 
मार दिया जाता है!
वहा दरिंदो की दुनिया है और 
यहाँ हमे नोच कर खाया जाता है!
सच कहुँ, 
तो हमारी दास्ताँ कोई नहीं समझ पायेगा!
हम वैश्या है, बस हमारे साथ हवस को मिटाया जायेगा!
हमारी मज़बूरियां, हमारा दर्द दफन आज भी है सीने में!
भेड़िये तो हर तरफ है, तो वैश्या बनकर ही मज़ा है जीने में!
हाँ, मैं वैश्या हूँ, अपने जिस्म को बेचा करती हूँ!
लोग कहते है पैसो के लिए, मैं ये धंधा करती हूँ!

- रेखा रुद्राक्षी।




परेशानियाँ!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\photos (1)\pareshaniya.jpg

परेशानियाँ!

परेशानियों से संघर्ष कर, परेशानियों को पार कर,
परेशानियाँ ही परेशानियों से परेशान हो जाती है!
ये ज़िन्दगी दो कदम चलती नहीं,
हर परेशानी फिर खड़ी, लाजवाब हो जाती है!
कोई तो सम्भालों इन परेशानियों  को!
ये जब भी आती है ज़िन्दगी में, 
एक तूफ़ान- सा लाती है!
परेशानियाँ तो परेशानियाँ है, हर किसी को आजमाती है!
आज मेरे घर है, कल तेरे घर मेहमान बन जाती है!
बहुत गुस्सा आता है, दिमाग काम नहीं करता!
जब एक ख़त्म न हो और दूजी परेशानी खड़ी हो जाती है!
कभी- कभी लगता है, 
ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहेगी!
परेशानियाँ हर बार नया दोस्त 
बनकर मिलती रहेगी!
होगा एक ही रूप इसका ये परेशानी है!
इसका आकार बदल जायेगा, 
इसका रूप बदल जायेगा!
पर ये हमेशा ज़िन्दगी में आती- जाती रहेगी!
इसलिए गौर से सुनिए, ये अजब- सी कहानी है!
ज़िन्दगी में लाती तूफ़ान की रवानी है!
परेशानियों से संघर्ष कर,परेशानियों को पार कर,
परेशानियाँ ही परेशानियों से परेशान हो जाती है!
ये ज़िन्दगी दो कदम चलती नहीं,
हर परेशानी फिर खड़ी लाजवाब हो जाती है!!

 - रेखा रुद्राक्षी।






राज़दार!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\photos (1)\raajdar.jpeg

राज़दार!

दौर दुनिया में,
बेवफाओं का अब फैला है!
इसलिए, हमने  भी  दिल  संभाल रक्खा है!
चकाचौंध शहर में भटक जाएंगे!
देखिए दिल  को सनम, 
उम्र में क्या रक्खा है!
तेरे प्यार को हमने रब की तरह पुजा है!
हर इबादत में हमने,
 नाम तेरा पहले रक्खा है!
जिससे भी हमने रिश्ता है, 
वफा का जोड़ा!
उसका दिल ना टूटे, 
ये ख्याल हमने सदा रक्खा है!
नहीं कहते किसी से अब, 
राज-ऐ - दिल अपना!
जो राजदार था, 
उससे भी अब हर राज़ छुपा रक्खा है!

- रेखा रुद्राक्षी।










उलझें- से रिश्ते!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\photos (1)\uljhe se riste.jpg

उलझें- से रिश्ते!

सच कहें तो, तुम्हे भूले नहीं हम!
मगर इसका जिक्र, किसी से करते नहीं है!
रहते है दिलो में, इक-दूजे के अब भी,
मगर दिल में बसी तस्वीर तेरी,
किसी को दिखाते नहीं है!
टुटा जो बरसों का रिश्ता हमारा!
हमारी ही गलतियां हैं!
किसी और की मेहरबानी नहीं है!
कभी देखा,जो तुमने मेरी आंखों में पानी!
पढ़ी तुमने, कभी मेरे दर्द की कहानी नहीं है!
हो जाती मेरे आंखों से ही बयां, मेरी हर दास्तां!
मुझको खुद अपने गमों की दास्तां,
किसी को सुनानी नहीं है!
काश, सुलझ जाता ये उलझा- सा रिश्ता!
सच में, तेरे बिन
जीना पड़े, वो जिंदगानी,जिंदगानी नहीं है!

- रेखा रुद्राक्षी।



खूनी खंजर!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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खूनी खंजर!

अब नहीं ढूंढते हम, 
कोई बा-वफा शहर में!
हमें बेवफाओं से, 
अब प्यार होने लगा है!
डूब जाए जिसके उफान में डूबकर कश्ती,
उस समन्दर पर, 
हमें अब एतबार होने लगा है!
सच कहें, 
कोई अब साथ निभाता नहीं है!
बुरा आजकल का चलन हो गया है!
ना कर किसी से उम्मीद, 
ज़ख्म पे मरहम लगाने की!
हर शख्स आजकल, 
खूनी खंजर हो गया है!

- रेखा रुद्राक्षी।



मुद्दत से चुप रहें!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

C:\Users\User.pc\Downloads\photos (1)\muddat se chup rahe.jpg

मुद्दत से चुप रहें!

बड़ी मुद्दत से चुप रहे, खामोश रहे!
तो लोगो ने हमें मगरुर कह दिया!
आज आवाज उठाई, ज़ुल्म की इन्तहा देखकर,
तो हमें गंवार कह दिया !
वाह, ये रिश्तों का बाजार तो देखो!
जिसने तिजोरी भरी दिखाई,
वो बातें कड़वी हजार कह गया!
जाओ ,मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता,
कौन गया, कौन आया जिंदगी में!
अपने सिवा, अब मेरा कोई, ना राजदार रह गया!
शिकायत करना फिजूल है, जानवरों की बस्ती में!
जहां लुटा मेरा संसार रह गया!
नोचकर खा गए, मेरे अपने मेरी खुशीयों को!
अब बस, 
मेरे पास मेरी तन्हाईयों का साथ रह गया!

- रेखा रुद्राक्षी।

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कुदरत का कहर!(कविता -संग्रह -"सुलगती ख्वाइशें !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

कुदरत का कहर! दुनिया की हालत गंभीर बड़ी है , मुसीबत में हर किसी की जान पड़ी है। कस रहे शिकंजा राजनीति वाले , और...