ख़ुशीं का फ़साना!
आज भी तो ठहरी नहीं,
ख़ुशी मेरे घर!
किसी ने उसे बहलाया होगा!
मेरे घर का पता, जब उसने ढूंढा होगा!
किसीने तो उसे,मेरा गलत पता बताया होगा!
आज भी ढूंढती हूँ, उसको
आस- पास!
वो दिखती है जब भी,
बड़ी होती है उदास!
जब भी मैंने उसे पास
बुलाना चाहा!
कुछ सवालों में मैं उलझी थी,उसे सुलझाना चाहा!
वो बोली आज- कल ग़म-ए -दौर की हवा चल रही है!
मैं जाती तो हूँ, हर घर पर!
पर मुझे मेरी जगह कहीं
मिलती नहीं है!
मैंनें फिर भी बहुत उसको,
अपनी बातों से बहलाया!
अपने घर आने के लिए, पता भी बताया!
पर जब भी ख़ुशी आती,
मेरी चौखट से लौट जाती!
मैं इस बात को, सच,
मैं समझ ही न पाती!
फिर एकदिन मैंनें ,
उसका हाथ थाम ही लिया!
बड़ी ज़बरदस्ती की और
उसने मेरी बातों को मान भी लिया!
सच में, मैं उस दिन बहुत
खुश थी!
ख़ुशी मेरे भी घर, अब चहक रही थी!
मेरी ज़िन्दगी फिर से महक रही थी!
पर न जाने कैसे,
मैंने दरवाज़ा तो बंद किया,
पर खिड़की बंद करना भूल गयी!
ख़ुशी को मौका मिला और वो फिर मुझसे दूर चली गयी,
आज फिर मेरे घर में,तन्हाइयोंऔर उदासियों का डेरा है!
न मेरा मन खुश है, न आता अब कोई ख़ुशी का सवेरा है!
आज भी तो ठहरी नहीं,
ख़ुशी मेरे घर!
किसी ने तो उसको बहलाया होगा!
मेरे घर का पता, जब उसने ढूंढा होगा!
किसी ने तो उसे, मेरा गलत पता बताया होगा!
- रेखा रुद्राक्षी।