मोहब्बत हैं या मजाक!
आजकल के जज़्बात, आजकल के एहसास,तमाशा है, जैसे खेल है कोई!
एक आशियाना उजड़ा नहीं, दूसरा तैयार पाया!
हमने हर इन्सान के चेहरे पर, मुखौटा हजार पाया!
अकेले में कहते है, बेपनहा मोहब्बत है तुमसे!
सबके सामने उनके इकरार को, हमने लाचार पाया,ये भी खूब रहा!
हमने कभी तुमसे, अपने लिए कुछ मांगा ही नहीं!
और तुम्हारे जज़्बात को, अपने लिए नागवार पाया!
खैर छोड़िए, जनाब! ये मतलबी रिश्तों का बाजार है!
हमने तो तुम्हें भी अपना बाजार में खरीदार पाया!
विश्वास की लौ जलाई थी, बड़ी शिद्दत से हमने!
हमारी जिंदगी में अंधेरा करने का,
कहीं न कहीं ,तुम्हें भी हमनें गुनहगार पाया!
तुम कहते हो, जन्मों के रिश्तें अनमोल है मेरे लिए!
आपकी नजरों में हमने,
हमारा रिश्ता ही क्यूं नापाक पाया?
चलिए छोड़िए, ये कोई नई बात तो नहीं, साहेब!
आप भी खुदगर्ज निकलें!
आपने कौन- सा अपने लफ़्ज़ों से कहर नया ढाया?
इस प्यार और जज़्बात को, मजाक क्यूं न कहें हम?
वो मोहब्बत तो करते हैं,
पर दुनिया के सामने उनकी जुबां को हमने,
हमेशा खामोश पाया!
आज आपको मतलबी रिश्तों का राज बताते हैं!
जिन्हें हमने पर्दे के अन्दर बेपनाह होते देखा,
और बाहर लाचार पाया!
आकर्षण को कभी प्यार का नाम न देना ,साहेब!
प्यार है तो क्यूं दुनिया के सामने,
तुमने खुद को शर्मिन्दा है पाया?
हमने तो राधा के दिल में श्याम है पाया!
श्याम की आंखों में बस राधा के लिए,प्यार है पाया!
उनकी भी अलग दुनिया और अलग दस्तुर थे,
पर प्यार सच्चा था उनका ,
न दुनिया के आगे मजबूर थे!
डरते तो वो है जिनके उसूल नहीं होते,
प्यार वही निभा पाते हैं,
जिनके रिश्ते मजबूत होते हैं, मजबूर नहीं होते!
- रेखा रुद्राक्षी।