मुद्दत से चुप रहें!
बड़ी मुद्दत से चुप रहे, खामोश रहे!
तो लोगो ने हमें मगरुर कह दिया!
आज आवाज उठाई, ज़ुल्म की इन्तहा देखकर,
तो हमें गंवार कह दिया !
वाह, ये रिश्तों का बाजार तो देखो!
जिसने तिजोरी भरी दिखाई,
वो बातें कड़वी हजार कह गया!
जाओ ,मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता,
कौन गया, कौन आया जिंदगी में!
अपने सिवा, अब मेरा कोई, ना राजदार रह गया!
शिकायत करना फिजूल है, जानवरों की बस्ती में!
जहां लुटा मेरा संसार रह गया!
नोचकर खा गए, मेरे अपने मेरी खुशीयों को!
अब बस,
मेरे पास मेरी तन्हाईयों का साथ रह गया!
- रेखा रुद्राक्षी।
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