सोमवार, 18 मई 2020

अब वक्त कम हैं!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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अब वक्त कम हैं!

लगता है, अब वक्त कम हैं!
आखिरी सफर में हम है!
मुस्कुराते लब है लेकिन,
पलकें भीगी और आँखें नम है!
जिसकी पनाहो में खुशी थी,
बड़ी सुकून कि वो घड़ी थी!
चाहा उसे मांग लूँ ख़ुदा से,
पर उसकी चाह, मेरी चाह से बड़ी थी!
वो उस मंजिल का मुसाफिर था,
जहाँ मुश्किलें बडी़ थी!
मैं भी खुदगर्ज तो नहीं थी,
उसकी खुशी, मेरी चाहत से बड़ी थी!
मैं जानती हूँ,अगर मैं इशारा कर दूँ,
तो शायद वो मेरा हाथ थाम लें!
पर,वो उस मंजिल का मुसाफिर था,
जहां मुश्किलें बडी़ थी!
औरदुनिया दीवार बन खड़ी थी!!
दिल सह रहा है क्या-क्या,
ये बातें अनकही थी!
मौत के दरवाजे पर,
दस्तक दे रही,अब जिंदगी थी!
मैं मुस्कुराऊं कैसे और गम छुपाऊं कैसे ?
जाना है सबसे दूर, ये तुझको बताऊं कैसे!
कहते है लोग, के तू हर ग़म को भुला दें!
पर हर बार कैसे ? कोई तो ये बता दे!
इतना आसान नहीं, मझधार से निकलना,
क्योंकि हर कोई अच्छा तैराक नहीं होता!
हर जिंदगी की जंग जीत लेते,
अगर खंजर से वार, अपनों का नहीं होता!
तुम कहते हो, के मुस्कुराओ,
पर हर दर्द में हंसना, आसान नहीं होता!
बस, आखिरी ख्वाहिश है, इस आखिरी सफर में,
काश, दीदार तेरा होता!
बेशक जिंदगी ने गम बहुत दिए,
पर तू मुझे मिला खुदा से!
ये जिंदगी का तोहफा बहुत बड़ा था!!
सच्ची दुआओं का, तू ही तो एक सिला था!
शुक्रिया, मेरी तुम जिंदगी में आए,
कुछ पल ही सही, हम दिल से मुस्कुराए!
माफ करना हमकों, गर हमने कोई खता की,
पर ये भी सच है, दिल से, सच्चे दिल से मैंने,
सिर्फ तुमसे और तुमसे वफा की!
पर, मेरे जाने का गम नकरना,
क्योंकि अब लगता है, वक्त कम है,
आखिरी सफर में हम है!

- रेखा रुद्राक्षी

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