समाज, प्यार,वफा और डर!
हर शख्स प्यार और वफा का तलबगार है!
हर कोई चाहता, मोहब्बत बेशुमार है!
दुनिया की साजिशों से जो जलता रहा,
वो रिश्ता दो दिलों का समाज को खलता
रहा!
कभी इस ज़मानें ने,
दो दिलों को मिलने न दिया!
कभी जाति, धर्म ,तो कभी समाज के नाम पे,
चाहत का फूल खिलने न दिया!
मिलकर उन्होंने अपने दम पर, कभी
जो आशियाना बनाया!
उसमें प्यार का दीपक, कभी दुनिया ने
जलने न दिया!
वैसे तो इस ज़माने में, बेवफाओं का
ज़ल--ज़ला है!
पर वफादारों को भी ,कभी दुनिया
ने मिलने न दिया!
सच है, जहां बस्ती है मोहब्बत की बगीया,
उस बाग को कभी इस दोगले समाज ने
फलने न दिया!
चाहता है हर शख्स,
सच्चा हमसफ़र!
पर समाज की अंधी परम्पराओं ने,
दो कदम भी ,
प्यार के परिंदों को चलने न दिया!
- रेखा रुद्राक्षी।