हम ज़ुबान के कड़वें!
हम सिर झुकाते हैं,
जहां इन्साफ होता है!
अदब,शराफत का मेल,
लाजवाब होता है!
हां, है बेहद हम ज़बान के कड़वें!
पर दिल में सबके लिए इज्जत,
बेहिसाब रखते हैं!
लफ़्ज़ों में हों, जिनके गुस्ताखियां!
हम उनसे रिश्ता,
नहीं जनाब रखते हैं!
हो तकलीफ़ ,चाहे जितनी भी हमें !
किसी अपने के दूर जाने से!
ग़लत हो गर, वो शख्स तो,
ऐसे अपनो से ,दूरियां हम खास रखते हैं!
क्या फायदा,
कारवां लाखों का बनाने से!
जो हो हमदर्द हमारा,
हम उसपे जान, हमेशा निसार रखते हैं!
- रेखा रुद्राक्षी।