मंगलवार, 19 मई 2020

सम्मान अधिकार है सबका!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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सम्मान अधिकार है सबका!

क्या नारी,क्या पुरुष- प्रधान,
सबकी अपनी एक पहचान!
मां ने घर को संभाला है!
पिता ने हमको पाला है!
मां ने खाना खिलाया है!
पापा ने भी तो कमाया है!
मां घर का काम जो करती है!
पापा की भी मेहनत तो, लगती है!
औरत-औरत की दुश्मन है!
ये सत्य वचन, ये सत्य कथन!
औरत ही सास जब बनती है!
बहू से झगड़े करती है!
शाम को लौटें जब पुरुष-प्रधान!
उनके कान,वहीं तो भरती है!
एक घर को, दो टुकड़ों में,
एक औरत ही हरदम करती है!
शादी से पहले जहां चार भाई थे,
एक छत के नीचे जो रहते थे!
अलग बिखर कर जो घर टूटें,
वो औरत के ही किस्सें थे!
जहां हुए मकान के हिस्सें थे!!
माना कि बलात्कार हो रहे!
माना औरत पर अत्याचार हो रहे!!
पर उनको कई बार बचाने वाले ,
मानव पुरुष-प्रधान ही होते है!
कौन ग़लत है? कौन सही है?
ये कैसे, कोई इन्साफ करें?
बस,औरत, औरत को समझें,
और खुद से ही इन्साफ करें!
जब उठे सर, जुल्मों-सितम का,
औरत ही औरत की मदद हर बार करे!
ये कलयुग है, 
युग बदलगया,
अब औरत, 
औरत का पहले सम्मान करें!

- रेखा रुद्राक्षी।




कुदरत का कहर!(कविता -संग्रह -"सुलगती ख्वाइशें !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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