मंगलवार, 19 मई 2020

एक एहसान कर दें!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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एक एहसान कर दें!

जिंदगी के हर रंग को, देखा है हमनें!
हर रिश्ते में प्यार का,
दिखावा देखा है हमनें!
मांगा जब उस खुदा से, खुशी का जहां!
वहां से भी खाली रहा, मेरा दामन!
अपनों ने ही हमको लूटा, ये देखा है हमनें!
सहते-सहते नफरत की इन्तहा हो गई!
हर बार एक नया दर्द सहा हैं हमने!
हर बार सोचा, अब कुछ अच्छा होगा!
पर हर बार, बुरा वक्त देखा हैं हमने!
आंखें थक गई, आंसुओं को बहाते- बहाते!
खुशी का मंजर, कब कहां देखा है हमने!
तलाशें, सुकून ढूंढा, जब किसी का साथ मिला!
पर उसका भी साथ, अधूरा पाया है हमने!
क्यूं हर बार, किस्मत रूला देती है हमें?
किसी का क्या बुरा किया है हमने?
मौत भी दरवाजे पर, क्यूं दस्तक नहीं देती?
ऐसा क्या गुनाह किया है हमने?
जीने की कोई मंजिल, कोई राह तो दिखा रब!
तेरे दर पे, हर बार ही तो, सजदा किया है हमने!
मांगी हमेशा, सब के लिए ही मन्नत!
अपने लिए, कब जिया है हमने?
रहम है तेरे दर पे तो इल्तज़ा इतनी है-
हम पे कभी रहम थोड़ा कर दें!
दामन है खाली, रास्ते हैं उलझे,
किसी बा-वफा को मेरी जिंदगी में ला,
औरउसे मेरी किस्मत का मसीहा कर दे!

- रेखा रुद्राक्षी।









कुदरत का कहर!(कविता -संग्रह -"सुलगती ख्वाइशें !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

कुदरत का कहर! दुनिया की हालत गंभीर बड़ी है , मुसीबत में हर किसी की जान पड़ी है। कस रहे शिकंजा राजनीति वाले , और...