बेवफा!
होती थी तकलीफ, इस दिल को!
धीरे- धीरे तेरा दिया ज़ख़्म भी नासूर हो गया था!
मालूम था, अब तन्हाइयों का सफर है आगे!
आंसुओं का दरिया, इसलिए ठहर कर थमने को मजबूर हो गया था!
क्या होता दिन-रात,
आंसुओ से दामन अपना भीगाकर?
जब मेरे आंसुओं को पोंछने वाला ही,
मुझसे दूर हो गया था!
समझ चुके थे, अकेला सफर नहीं कटने वाला!
दिल बोझिल- सा, नए हमसफ़र की तलाश में,
फिर हो गया था!
डर तो था, कि फिर नया ज़ख़्म, नहीं मिल जाये कोई!
पर हम भी बेवफा बनना चाहते थे अब!
क्योंकि तन्हाइयो को भी,
हमसे बेइन्तहा प्यार हो गया था!
- रेखा रुद्राक्षी।