मेरा दर्द!
अपना हर दर्द, अब खुद से बांटती हूँ!
शिकवा-शिकायत, अब किसी से नहीं करती हूँ!
हर शख्स आजकल झूठ का दरिया है,
ये जानती हूँ!
क्या फायदा पत्थर से टकराकर, उसे कोसने से!
पत्थर ने ही संभल कर चलना सिखाया,
ये बात मानती हूँ!
नहीं मजबूर कर सकतें हालात,
कि कोई किसी का दिल तोड़ें!
धोखेबाज़ों की है ये निशानी, मैं बस ये जानती हूँ!
कोई मानें न मानें, अब मुझे फर्क नहीं पड़ता!
मैं खुद ही खुद का हौंसला हूँ, बस ये मानती हूँ!
हर शख्स से रूबरू होकर भी,
उन पर विश्वास नहीं करती!
क्योंकि ये कलयुग है,
बदलते चेहरे पहचानती हूँ!
- रेखा रुद्राक्षी।
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