लकड़ी!
कितनी ईमानदार है लकड़ी!
हमेशा साथ है लकड़ी,
बड़ी कमाल है लकड़ी!
बेशक हम अपनी बातों में,
नहीं करते ज़िक्र लकड़ी का!
पर ताउम्र साथ-साथ है लकड़ी!
जो रिश्तों की अहमियत नहीं समझे,
उनके लिए तो, बस, बेकार है लकड़ी!
पर सच कहें,
तो बड़ी ईमानदार है लकड़ी!
पेड़ों की छाँव से लेकर,घर का शृंगार है लकड़ी!
हमेशा साथ है लकड़ी,
बड़ी कमाल है लकड़ी!
पुरानी यादों से जुड़ा संसार है लकड़ी!
स्कूल जाते थे, लिखते-पढ़ते थे जिस तखती पर!
वो किताब है लकड़ी!
बचपन मे चलना सीखते थे, जिस उड़न- खटोलें पर!
वो तीन पहियों की कार है
लकड़ी!
हमेशा साथ है लकड़ी,
बड़ी कमाल है लकड़ी!
वो चार पहियों की खाट का
बिछौना था!
पूरे परिवार की शाम गुज़रती थी, जिस पर बैठकर!
उस सोफे और बिस्तर का,
अविष्कार है लकड़ी!
हमेशा साथ है लकड़ी,
बड़ी कमाल है लकड़ी!
कोई गलती हो, तो पापा मार- मार के तोड़ देते थे!
वो पुराना हथियार है लकड़ी!
सावन की घटा छाती थी, तो झूला झूलते थे!
हमारे आँगन में वो पेड़ की
डाली, बड़ी मज़बूत थी लकड़ी!ढलती उम्र के साथ, झुकती
कमर के दर्द को, जो आराम
देती थी!
जिस कुर्सी में बैठकर आराम करते थे ,वही हमेशा साथ थी लकड़ी!
हमेशा साथ है लकड़ी,
बड़ी कमाल है लकड़ी!
ना कोई संगी, ना कोई साथी था, अकेला सफर बाकी था!
उसी सफर में जो दूर तक,
साथ चली, वही हमसफ़र है
लकड़ी!
बड़ी गहरी नींद में, जब हम सोये और हुए रुखसत, दुनियासे!
उस वक़्त बांस की वो शैया
बनी, मेरा वो घर बार थी
लकड़ी!
हमेशा साथ है लकड़ी,
बड़ी कमाल है लकड़ी!
अंतिम समय तक जिसने
वफ़ा निभाई,
सच मानिये, सबसे ईमानदार है लकड़ी!
- रेखा रुद्राक्षी।