अल्फाजों के मोती!
गमों को चलो कुछ तो, इस तरह फिर सताया
जाए!
क्यूं ना खुलकर, अब हर रोज मुस्कुराया जाए!
लोगों की नजरों में बन जाए, पहचान हमारी
अपनी!
ऐसा कोई हुनर खुद में जगाया जाए!
गमों को चलो कुछ तो, इस तरह फिर सताया
जाए!
क्यूं ना खुल कर, अब हर रोज मुस्कुराया जाए!
फरेब के दल-दल में, जो डूब चुकी है दुनिया!
हौंसला करके क्यूं ना,उस दल-दल को फिर से, जमीं बनाया जाए?
गमों को चलो कुछ तो, इस तरह फिर सताया
जाए!
क्यूं ना खुलकर, अब हर रोज मुस्कुराया जाए!
गुजर जाएगी, दुखों की हर एक घड़ी!
क्यूं ना दुखों को,मदारी का इशारा समझ नचाया जाए?
गमों को चलो कुछ तो, इस तरह फिर सताया
जाए!
क्यूं ना खुलकर, अब हर रोज मुस्कुराया जाए!
रो कर हमेशा, आंखों को दर्द देने से अच्छा है,
आंखों को बंद कर, नया सपना कोई बेहतरीन
सजाया जाए!
गमों को चलो कुछ तो, इस तरह फिर सताया
जाए!
क्यूं ना खुलकर, अब हर रोज मुस्कुराया जाए!
आती ना हो, जहां बीती यादें लौट कर,
क्यूं ना उस जगह पर, एक आशियाना बनाया जाए!
गमों को चलो कुछ तो, इस तरह फिर सताया
जाए!
क्यूं ना खुल कर, अब हर रोज मुस्कुराया जाए!
- रेखा रुद्राक्षी।