सोमवार, 18 मई 2020

दरख़्त!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

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दरख़्त!
             
रहनें दो कटे हुए दरख़्तौं को, सूखा हुआ,वो अब बेजुबान है!
वो अपने लिए लड़ नहीं सकतें,उनमें नहीं अब जान है!
रहने दो कटे हुए दरख़्तौं को, सूखा हुआ,वो अब बेजुबान है!
हरे- भरे होकर भी 
कौन- सा वो मुस्कुराए है!
कभी तुफां से टकराकर गिरें, तो कभी आंधी आने पर थर्राए है!
रहने दो कटे हुए दरख़्तौं को, सूखा हुआ,वो अब बेजुबान है!
वो अपने लिए लड़ नहीं सकते,उनमें नहीं अब जान है!
ये जिंदगी भी इन दरख़्तौं की तरह है!
हरी- भरी, पर थर्राई
-सी, गमों की आंधी से कंप- कंपाई- सी!
कब कौन जिंदगी में तुफां ला दें, इस बात से घबराई- सी!
रहने दो कटे हुए दरख़्तौं को, सूखा हुआ,वो अब बेजुबान है!
वो अपने लिए लड़ नहीं सकते,उनमें नहीं अब जान है!
एक पौधा बचपन से सींचा 
जाता है!
एक उम्मीद की लौ की चाहत में, उसे लम्बी उम्र तक खींचा जाता है!
फुल हुए तो खुशबु देंगे, फल 
हुए तो खाएंगे!
मतलब परस्त है दुनिया, इन दरख़्तौं से सीखा जाता है!
रहने दो कटे हुए दरख़्तौं को, सूखा हुआ,वो अब बेजुबान है!
वो अपने लिए लड़ नहीं सकते,उनमें नहीं अब जान है।
जीवन-चक्र का भी यही हाल है!
किससे कितना फायदा होगा, रिश्ता उसी से बनता कमाल है!
बिन काम के अब रिश्तें कौन निभाता है?
सुखे दरख़्तौं की तरह अब,  रिश्तों को भी जड़ से उखाड़ 
दिया जाता है!
रहने दो कटे हुए दरख़्तौं को, सूखा हुआ,वो अब बेजुबान है!
वो अपने लिए लड़ नहीं सकते, उनमें नहीं अब जान है!

-रेखा रुद्राक्षी।




कुदरत का कहर!(कविता -संग्रह -"सुलगती ख्वाइशें !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

कुदरत का कहर! दुनिया की हालत गंभीर बड़ी है , मुसीबत में हर किसी की जान पड़ी है। कस रहे शिकंजा राजनीति वाले , और...