बुधवार, 13 मई 2020

आग धर्म की!(कविता -संग्रह -"फड़फड़ाती उड़ान !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),


C:\Users\User.pc\Downloads\poetrypart2\22. aag daram.jpg


आग धर्म की!

धर्म की आग लगानें वालों! मत बांटो भगवान को!
राम -रहीम को मत ललकारों! पहचानो इंसान को!
खून -खराबा बहुत कर चुके,
क्या बांटोगें अब संसार को!
चलों चांद बांट लो! सूरज भी बांट लो!
और बांट के दिखाओं ,सुबह और शाम को!
मुस्लिम के लिए, तुम चांद छोड़ दो!
और सूरज दे दो ,हिन्दू धर्म-समाज को!
कर सकता हों, जो इनके टुकड़ें!
वो कहीं तो, एक इन्सान हो!
क्या पागलपन ,क्या बहरापन?
जो सून ना सकों, दर्द भरी आवाज तुम!
ख़ुदा वहीं ,भगवान वहीं!
रहम वहीं, इन्सान वहीं!
बस, धर्म के दंगों में जिन्हें जला दिया!
ढूंढो, खोजों , बस खोया है इन्साफ कहीं!
बस ,खोया है ईमान कहीं!

- रेखा रुद्राक्षी।



कुदरत का कहर!(कविता -संग्रह -"सुलगती ख्वाइशें !"/कवियत्री -रेखा रुद्राक्षी !),

कुदरत का कहर! दुनिया की हालत गंभीर बड़ी है , मुसीबत में हर किसी की जान पड़ी है। कस रहे शिकंजा राजनीति वाले , और...