मैं तन्हा क्यूं हूं?
साथ सच्चा न मिलें,
तो क्या कीजिएगा?
बार-बार, क्या रब से दुआं कीजिएगा?
मैं तन्हा हूं, दुनिया से भरी भीड़ में भी,
ये शिकवा,शिकायत किससे कीजिएगा?
अपना ही साथ खुद से,
हम निभा न पाए!
किसी और से हमदर्द बनने कि,
न कभी इल्तज़ा कीजिएगा!
ये दुनिया,
नहीं मरहम लगाने के काबिल!
अपने दर्द, जरा सोचकर बयां कीजिएगा!
जब अपने ही बन जाएं,
कातिल शहर में!
तो बचाने की, किससे दुआं कीजिएगा?
नहीं हर कोई हमनवां- हमसफ़र!
दिल लगाने की,न कोशिशें कीजिएगा!
यहां हर कोई जला रहा है,
खुशी के आशियाने!
बस, अपने मकां की हिफाजत कीजिएगा!
मैं तन्हा हूं,मुझे नहीं अफसोस कोई!
जब अपने ही देने लगें, हर बार धोखा,
तो किससे वफा-ए- मोहब्ब्त का,
शुरु सिलसिला कीजिएगा!
तन्हाई हमको सिखाती है हरदम!
के हमसे ही, अपने गमों का सौदा कीजिएगा!
किसी और से,
कह गए जो राज-ए - दिल,
तो चुप रहने की,
न उससे फिर इल्तज़ा कीजिएगा!
इसलिए, तन्हाइयों का सफर ही अच्छा,
अपने जख्मों पर, खुद ही, हँसकर मज़ा लिजियेगा!
- रेखा रुद्राक्षी।